इंडियन स्कूल आफ डेमकरसी मेरी ज़िंदगी का सबसे खूबसूरत हिस्सा रहा है. मय ये समझता हूँ के विध्यार्थी के समय से जिस अक्टिविसम का मय हिस्सा रहा हूँ, उसका अगला पड़ाव ऐ एस डि है. जहाँ मुझे टहेर कर अपने आगे के सफ़र को तय करने का मौका मिला, और सबसे विशेष बात ये रही है के उस सफ़र में साथ चलने के लिए कयी सारे मज़बूत साथी मिले. और इस बात को भी समझने का अवसर प्राप्त हुआ के वैचारिक मतभेद रखते हुए कैसे आपसी सहअस्तित्व बनाया जसकता है, जिस की आज भारत को सबसे ज़्यादा ज़रूरत है.
ये तो कुछ वैचारिक बदलाव रहे, इससे आगे बड़ते हुए मैदान की, अपने षेत्र में कैसे काम किया जाए इसपर हमारी बहोत सी गुफ़्तगू रही. जिससे मय ये सीखा की पूँजियो को कैसे समझा और हासिल किया जसकता है. बौद्धिक पूँजी से राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, नैतिक पूँजियों की राजनीतिक सफ़र में क्या भूमिका है ये समझने में स्पष्टता ऐ एस डि द्वारा प्राप्त हुई. कयी सारे राजनीतिक दिग्गजों को मिलने और रास्त बात कारने का मौक़ा मिला, शायद ही मय इतना सारा एक्सपोज़र एक जगह से हासिल कर पाता जितना ऐ एस डि के मंच से मिला. अपने मक़सद से लगाव और उसके तरफ़ बड्ने की जुस्तजू में मय ने काफ़ी बदलाव इस सफ़र के बीच महसूस किया है.
टी जी पी के साथियों की कहानिया मुझे हमेशा प्रेरित करेंगी और ज़िंदा रखेंगी. इन सब से बड़ कर मय ने खुद पे काम करना सीखा है और मय कूद पे काम करने की प्रक्रिया में भी हूँ. इक़बाल साहब का वो पक्तियाँ मुझे बार बार सताती हैं.
“अपने मन में डूब कर पाजा सुराग ए ज़िंदगी, तू मेरा नहीं बनता ना बन अपना तो बन” मय हमेशा इस क़ूबसूरत लोगों का हिस्सा बना रहूँगा और भारत को दुण्या का सबसे आला इनक़्लुसिव लोकतंत्र बनाने में अपनि अहम भूमिका निभाऊँगा.
वास्सलाम
ज़िशान आख़िल सिद्दिखी
कर्नाटक
Comentarios